पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अब एक नई मुसीबत में फंस गए हैं। देश की डगमगाती अर्थव्यवस्था और विदेश नीति को लेकर गहरे दबाव के बीच एक शख्स उनकी कुर्सी के पीछे पड़ गया है। इन हजरत का नाम है मौलाना फजल-उर-रहमान और ये पाकिस्तान की धार्मिक पार्टी जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के प्रमुख हैं। इन्हें मौलाना डीजल भी कहा जाता है। इनके पिता खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, जबकि खुद मौलाना पाकिस्तानी संसद में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभा चुके हैं। फिलहाल मौलाना ने अपने हजारों समर्थकों के साथ राजधानी इस्लामाबाद में डेरा डाल दिया है और इमरान का इस्तीफा लिए बगैर वापस लौटने को तैयार नहीं हैं।
आम चुनावों में धांधली का आरोप लगाते हुए मौलाना ने इमरान को इस्तीफा देने के लिए 48 घंटे का समय दिया था, जिसे उन्होंने 24 घंटे और बढ़ा दिया। मौलाना को पूरे अपोजिशन का समर्थन मिल रहा है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के नेता बिलावल भुट्टो ने इमरान सरकार को अवैध करार देते हुए कहा कि इस विरोध मार्च को उनकी पार्टी समर्थन देती रहेगी। जेयूआई-एफ के नेता सलाउद्दीन अयूबी ने कहा कि इमरान को देश पर दया दिखाते हुए अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। मौलाना के इस विरोध मार्च को पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पीएमएल (एन) का भी समर्थन हासिल है। बहरहाल, पुलिस ने रविवार को मौलाना के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। उन पर प्रधानमंत्री और सरकारी संस्थानों के खिलाफ लोगों को भड़काने का आरोप है। शिकायत दर्ज कराने वाली महिला ने कहा है कि मौलाना और उनके समर्थक अशांति फैलाने और देशद्रोह के दोषी हैं। वैसे मौलाना पहले भी कई नेताओं की परेशानी का सबब बन चुके है और उनकी मंशा पर भी सवाल उठाए जाते रहे हैं। नवाज शरीफ की सरकार में मौलाना को केंद्रीय मंत्री का दर्जा मिला हुआ था। पिछले साल सरकार विरोधी समूह की ओर से वह राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार भी बनाए गए थे। उन्हें तालिबान का समर्थक माना जाता है, हालांकि कुछ समय पहले से वह खुद के उदारवादी होने की बात कह रहे हैं। मौलाना ने साल 1988 में बेनजीर भुट्टो के प्रधानमंत्री बनने पर साफ कहा था कि एक औरत की हुक्मरानी उन्हें कबूल नहीं है। बाद में विवाद बढऩे पर उन्होंने इस बयान को वापस ले लिया था। सचाई यह है कि पाकिस्तान की जनता स्थापित पार्टियों के शासन से इतनी हताश हो चुकी है कि उसे मौलाना फजल-उर-रहमान जैसे लोगों में भी एक उम्मीद नजर आने लगी है। इमरान अपने चुनावी वादे पूरे करने में सफल नहीं हो पाए हैं। मुल्क की हालत में बदलाव के कोई ठोस संकेत अभी तक नहीं मिले हैं। इमरान का कहना है कि हालात बदलने में वक्त लगेगा। असल डर इस बात का है कि मौलाना को आगे करके कहीं चरमपंथी तत्व हालात का फायदा न उठाना चाहते हों। जुबानी जमाखर्च से राज चलाने वाली सरकारों से परेशान पाकिस्तान के लिए यह और घातक होगा।
घिरे हुए इमरान