मुहावरों से हुई दुधारी तरकारी


अपनी बीमारी के बारे में जिस भी डॉक्टर से बात करो तो उपचार में एक बात सब कहते हैं कि हरी सब्जियों और फलों का उपयोग करो। स्वास्थ्य में फल-सब्जियों के उपयोग से तो हम सब वाकिफ हैं पर मुहावरों में फल-सब्जियों के उपयोग और मिठास को सब नहीं जानते। दरअसल मुहावरों में फल-सब्जियों की एक खास जगह है। किसी पर कटाक्ष करना हो, किसी को उसकी हैसियत का आभास करवाना हो या कोई अन्य मन:स्थिति हो तो ये मुहावरे वारे -न्यारे कर देते हैं। किसी की स्थिति कम आंकनी हो तो हम रौब से पूछते हैं-हां भई! तू किस खेत की मूली है?
अत्यधिक कड़वा बोलने वाले या अशिष्ट व्यवहार की व्याख्या करने के लिये कहा जाता है-एक तो करेला दूसरा नीम चढ़ा। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि नीम का अर्थ नीम वृक्ष नहीं है बल्कि 'नीम चढ़ाÓ का मतलब है आधा पकाया हुआ।
बैंगन के ऊपर हरे रंग का ताज लगा होता है और इसी कारण बैंगन को सब्जियों का सरताज कहते हैं। पर लगातार पारी या पार्टी बदलने वाले को थाली का बैंगन कहा जाता है क्योंकि वे थाली में रखे बैंगन की तरह हमेशा अस्थिर होते हैं। और ये लुढ़कने वाले बैंगन केवल राजनीतिक पार्टियों में ही नहीं होते बल्कि हर घर और दोस्तों के दायरों में भी होते हैं।
आसमान से गिर कर खजूर में अटकना यानी एक परेशानी से निकल कर दूसरी में उलझ जाना। और परेशानियों का यही सिलसिला जीवनभर हमारे साथ चलता रहता है। परेशानियों के साथ-साथ लाभ-हानियां भी चलती रहती हैं। यदि किसी को दोहरा लाभ हो तो सब कहते हैं- आम के आम गुठलियों के दाम। इसी तरह यदि एक वस्तु के ज्यादा खरीदार हों तो सहसा मुंह से निकलता है-एक अनार सौ बीमार। अत्यधिक प्रयास करने के बाद भी किसी दुर्लभ वस्तु की प्राप्ति न होने पर चुटकी ली जाती है कि अंगूर खट्टे हैं।
मूर्खों को गुणों परख कहां होती है। या यूं कहें कि अज्ञानी व्यक्ति किसी के महत्व को नहीं आंक सकता तो ऐसी स्थिति में हम कह उठते हैं-बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद।
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