चेन्नई इस समय भारी जल संकट से गुजर रहा है। बीच गर्मी के मौसम में शहर की चार झील सूख गई हैं, जहां से शहर को जल की आपूर्ति की जाती थी।
शहरवासियों को पीने, नहाने और कपड़ा धोने के लिए पानी मयस्सर नहीं हो रहा है। लोग अपने घर से काम कर रहे हैं, मॉल ने अपने बाथरूम बंद कर दिए हैं। रेस्तरां बंद हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में सामान्यत: हम जलवायु परिवर्तन पर सारा दोष मढ़ देते हैं। पर चेन्नई में जो हो रहा है वह हमारा खुद का किया हुआ है। फ्लड प्लेन पर बैठे इस शहर में झीलों और दलदलों को पक्का कर दिया गया, जिसके कारण भूमिगत जल की पूरी भरपाई नहीं हो पाई। इस वजह से भारी बारिश के बावजूद शहर के नीचे मौजूद जलभरों में पर्याप्त जल जमा नहीं हो पाया। इस वजह से अधिकांश जल जमीन पर ही रहा, परिणामत: इस वर्ष के जल संकट से निपटने के लिए आवश्यक जल उपलब्ध नहीं रहा। अन्यत्र, जल की मांग एक समस्या है।
सैद्धांतिक रूप से, भारत में हर साल इतना पानी होता है कि एक अरब से अधिक लोगों की पानी की जरूरतों को पूरा किया जा सके। केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, हर साल देश को 3,000 अरब घन मीटर जल की जरूरत होती है, जबकि वष्रा से हमें हर साल 4,000 अरब घन मीटर पानी प्राप्त होता है। पर अक्षमता के कारण जल की बर्बादी ज्यादा होती है। भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में स्थिति विशेष रूप से ख़्ाराब है, जहां हिमालय से निकली नदियां जल का सबसे बड़ा स्रोत हैं। 1970 के दशक में हरित क्रांति ने देशवासियों को काफी प्रभावित किया और पश्चिमोत्तर क्षेत्र देश में अनाज उत्पादन का मुख्य क्षेत्र बन गया।
पर इसने नहरों और नलकूपों के माध्यम से भूमिगत जल के दोहन को एकदम बढ़ा दिया। तो उस समय जिस हरित क्रांति की इतनी प्रशंसा हुई वह अंतत: हमारे लिए घाटे का सौदा साबित हुआ है। पश्चिमोत्तर राज्यों में ऐसी फसल उगाई जानी चाहिए, जिनमें कम पानी लगता है; देश के पूर्वी इलाकों में जहां वष्रा ज्यादा होती है, उन्हें देश के लिए अनाज उगाने की जिम्मेदारी अपने कंधे पर उठानी चाहिए। जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में सक्रिय कार्यकर्ता काफी दिनों से कहते आ रहे हैं कि 21वीं सदी में पानी राजनीतिक विवाद का चरम बिंदु होगा। पानी की कमी झेलने वाला भारत दुनिया में इस विवाद का पहला साक्षी बनेगा। भारत के रणनीतिकार कई बार यह चिंता जता चुके हैं कि चीन तिब्बत में हिमालय से निकालने वाली नदियों से आने वाले पानी को अन्यत्र ले जा सकता है ताकि वह अपने प्यासे शहरवासियों को पानी उपलब्ध करा सके।
चेन्नई में आई बाढ़ एक चेतावनी है। जैसे-जैसे विश्व का तापमान बढ़ रहा है, भारत में वष्रा की स्थिति को यह प्रभावित करने लगा है। समय पर बारिश नहीं हो रही है और जहां हो भी रही है, वह काफी अनिश्चित और अनियमित बन गया है। स्थिति ऐसी आ गई है कि हम अपने इस अनमोल संसाधन की बर्बादी का जोखिम नहीं उठा सकते। तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था और शहरीकरण की ओर तेजी से बढ़ते कदम को देखते हुए देश के शहरों को सूखे के प्रभाव से बचाना होगा और कृषि को और अधिक युक्तिसंगत बनाना होगा। जल-संग्रहण को वरीयता देनी होगी और भूमिगत जल की भरपाई की व्यवस्था को दुरुस्त करना होगा। अब हर आने वाली गर्मी पहले से ज्यादा असहनीय होती जा रही है। अगर भारतीयों के पास जल का अभाव होता है, दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश रहने योग्य नहीं रह जाएगा।
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