बड़े स्टार्स नहीं, बल्कि थिअटर आर्टिस्ट बनाते हैं बेहतरीन फिल्में: आहना कुमरा


महानायक अमिताभ बच्चन के साथ टीवी सीरियल युद्ध, एकता कपूर की फिल्म लिपस्टिक अंडर माय बुर्का और द ऐक्सिडेंटल प्राइममिनिस्टर के बाद सुर्खियों में आईं बोल्ड-बेबाक अभिनेत्री आहना कुमारा ने बताया कि एक बेहतरीन फिल्म बनाने के लिए बड़े स्टार्स नहीं, बल्कि थिअटर के आर्टिस्ट की जरूरत होती है।
बीते सालों में बड़े-बड़े स्टार्स की फिल्मों का हश्र क्या हुआ यह तो जगजाहिर है। बॉलिवुड के बड़े स्टार्स, जैसे शाहरुख खान की जीरो, आमिर खान की ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान और सलमान खान की फिल्म ट्यूबलाइट का बॉक्स ऑफिस पर क्या हाल हुआ था, यह जगजाहिर है। इस दौरान राजी, बरेली की बर्फी और बधाई हो जैसी कॉन्टेंट वाली फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर धुआंधार कमाई कर बाजी मारी थी।
नसीरुद्दीन शाह, मकरंद देशपांडे, रत्ना पाठक शाह, रजित कपूर, अतुल कुमार, आनंद तिवारी, मानव कौल, रघुबीर यादव, मनोज पहवा, नीना गुप्ता, सोनी राजदान, सीमा पहवा जैसे दिग्गज कलाकारों की तारीफ करती हुई कहना कहती हैं, बदलते समय के साथ हमारा दर्शक भी बदला है, वह अब अभिनय और फिल्मों के कॉन्टेंट की तुलना देश-दुनिया की उपलब्ध सामग्री के साथ करता है। इन दिनों जिस तरह का कॉन्टेन्ट पसंद किया जा रहा है, उसे देखकर तो यही लगता है कि थिअटर के कलाकार जब इकठ्ठा होते हैं, तब एक बेहतरीन फिल्म बनती है। एक अच्छी और बेहतरीन फिल्म स्टार्स नहीं, बल्कि थिअटर के आर्टिस्ट बनाते हैं। स्टार्स पावर से फिल्में बिकती हैं। 
पिछले एक दशक से थिअटर से जुड़ीं आहना कुमरा कहती हैं, लगातार फिल्मों की शूटिंग के बाद एक समय ऐसा आता है, जब थिअटर में परफॉर्म करने की तलब उठती है, यह तलब तब तक शांत नहीं होती जब तक मैं एक साथ तीन से चार प्ले देख न लूं। कई बार तो मैं सुबह उठते ही घर से निकल कर सीधा जुहू स्थित पृथ्वी थिअटर पहुंच जाती हूं। अपना पूरा दिन वहीं बिताती हूं, वापस लौटती हूं तो उत्साह और एक अलग तरह की एनर्जी मेरे साथ होती है। थिअटर में परफॉर्म करना या कोई नाटक देखना मेरे लिए टॉनिक की तरह है। 
आहना बताती हैं, मेरी शुरुआत पृथ्वी थिअटर में छोटे-मोटे काम करने से हुई थी। मैं थिअटर के ऑफिस का काम सिर्फ इसलिए करती थी, ताकि मुझे पृथ्वी में ज्यादा से ज्यादा समय बिताने का मौका मिले।